"वक्त"
"वक्त"
वक्त की यहां दुनिया में हर शह गुलाम है
जो चलते सीना तान, होंगे खाक तमाम है
वक्त से न चले, उनसे लेता वक्त इंतकाम है
वक्त ही खुदा है और वक्त ही भगवान है
वक्त से बिगड़ते, वक्त से सुधरते काम है
जो अपने वक्त को यहां नहीं पहचानते है
वक्त छीन लेता उनकी सुबह और शाम है
वक्त उनकी सुने, जो दे वक्त को सम्मान है
जो वक्त पर लगाता रहता बस इल्जाम है
वक्त, वक्त आने पर करता उन्हें बदनाम है
वक्त की यहां दुनिया में हर शह गुलाम है
राजा-रंक वक्त के लिये यहां सब आम है
अच्छे-अच्छे का वक्त ने तोड़ा अभिमान है
जो वक्त को माने, उसे वक्त देता इनाम है
वक्त बनाता उन्हें यहां कोहिनूर नायाब है
जो वक्त को माने यहां पर अपनी जुबान है
वक्त की यहां दुनिया में हर शह गुलाम है
जो वक्त को बताता अपना स्वाभिमान है
वक्त, वक्त आने पर बढ़ाता उसकी शान है
वक्त इस दुनिया का अनमोल वरदान है
वर्तमान वक्त ही जिसकी यहां पर जान है
वक्त उसे पहुंचाता जमीन से आसमान है
उसका यहां कोई बुरा वक्त नहीं होता है
जो हर वक्त को मानता अपनी मुस्कान है
वक्त ही जिसका यहां खुदा और ईमान है
वक्त, वक्त बीत जाने पर देता उसे नाम है
वक्त को न दे गालियां, वक्त वो इरफान है
जिसका जैसा कर्म, वैसा फल दे, तमाम है।