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Om Prakash Fulara

Abstract

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Om Prakash Fulara

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वक्त

वक्त

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वक्त वक्त की बात है

वक्त से ही जीत और हार है

बनके फौलाद कुछ नही होता

क्या पता कब पड़े वक्त की मार है।


इंतजार करो कुछ पलों का

वक्त अपना करतब दिखाएगा

प्रेम रस की धार बहेगी

या वक्त जहर पिलाएगा।


उम्मीद पर खड़ा है संसार

पर वक्त से कोई जीत नहीं पाया

खुशी के सपने सजाए जब जब

वक्त दुःखो की सौगात है लाया।


वक्त सबका बदलता है हमेशा

अपने पराए होते देर नहीं लगती

लाड़ होता है जहाँ हद से ज्यादा

वक्त बदलते दरारें भी वहीं पड़ती।


बुलबुला पानी का रहता नहीं सदा

क्षण बाद उसे मिटना ही पड़ता है

वक्त के करतब से अनभिज्ञ है जो

अहम में चूर हो सदा लड़ता है।


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