वक़्त-वक़्त की बातें
वक़्त-वक़्त की बातें
कौन है वह?
जिसकी याद में
बेवक्त मन गिर जाता है
यादों की उन गहराइयों में,
जिसका केवल नाम किसी
और की ज़ुबान पर आते ही तुम्हारा
मायूस चेहरा खिल उठता था,
थे चाहते तुम बनना उसके जैसा,
मानते थे कभी उसे खुदा,
और वक़्त की करवट को देखो,
अब तो बेहतर यही लगता है,
न सुनो तुम नाम उसका!!
वक़्त-वक़्त की बातें हैं,
ये लम्हे यूँ ही बीतते हैं सदा ।।
कौन है वह ?
देते हो दोष जिसको हर बात का?
पर जब याद आती है तुम्हें बीते उन लम्हों की,
एक पल के उस ठहराव में,
जी लेते हों सारा समा,
कुछ कर न पाने की झिझक,
वक़्त के उस बीते आयाम में,
जो है अब तुम्हारी किस्से,
कविताओं का हिस्सा!!
उम्र के उस पड़ाव प़र जहां,
देने के लिए बचीं है केवल नसीहतें,
सामना करना है उस अंतिम सत्य का,
और बनना है हिस्सा प्रकृति का।
वक़्त-वक़्त की बातें हैं,
ये लम्हे यूँही बीतते हैं सदा ।।
कौन है वह ?
जो, ना रुकता है किसी के लिए,
है ना जिसका कोई पराया ना अपना,
क्या कहें उसे, एक साधु,
या कहें उसे सबसे बड़ा न्यायाधीश,
है जो निष्पक्ष सबके लिए,
हो वह चाहे गरीब चाहे अमीर।
वक़्त-वक़्त की बातें हैं,
ये लम्हे यूँही बीतते हैं सदा ।।
कौन है वह?
जो भर देता है हर घाव को,
हो चाहे वह कितना भी पुराना,
है जो बेमौसम बारिश जैसा
और कभी होता है वसंत की प्यारी छाँव जैसा,
एक विशाल सागर जिसके तल में
ज्ञान रुपी मोतियों की भरमार है,
जो केवल आगे देखना जानता है
वक़्त-वक़्त की बातें हैं,
ये लम्हे यूँही बीतते हैं सदा ।।
समय एक ऐसा शाश्वत सत्य है
जिसकी सटीक परिभाषा आज तक वैज्ञानिक भी नहीं दे सके,
जो ज्ञात और अज्ञात वास्तविकताओं से परे है,
और जो ब्रह्मांड की शुरूआत से लेकर अंत
तक है सदा के लिए।।
