STORYMIRROR

Archana Verma

Abstract

4  

Archana Verma

Abstract

वक्त की आज़माईश

वक्त की आज़माईश

1 min
254

ये जो मेरा कल आज धुंधला सा है

सिर्फ कुछ देर की बात है

अभी ज़रा देर का कोहरा सा है

धुंध जब ये झट जाएगी


एक उजली सुबह नज़र आएगी

बिखरेगी सूरज की किरण फिर से

ये ग्रहण सिर्फ कुछ देर का है

अभी जो अंधेरा ढीठ बना फैला हुआ है


तुम्हें नहीं पता,वो तुम्हें आजमाने

पर तुला हुआ है

इस अंधेरे को चीर उसे दिखलाओ

तुम्हारी काबिलयत पर उसे शक सा है


ये माना, मंजिल तक पहुँचने के

रास्ते कुछ तंग हो गए हैं

हसरत थी जिनके साथ चलने की,

उनपे चढ़े मुखौटों को उतरता देख,

हम दंग हो गए हैं


सही मानों में तू आज,

इस वक्त का शुक्रगुज़ार सा है

राहतें भी मिल जाएगी एक दिन,

अभी तू थोड़ा सब्र तो रख


जो तुझे आज हारा हुआ समझते हैं

उनको एक नए कल से मिलवाने,

की तड़प दिल में लिए, चलता चल


टूट कर बिखरे थे तुम कभी,

ये दास्ताँ, सुनने को तेरा कल बेक़रार सा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract