वक्त की आज़माईश

वक्त की आज़माईश

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ये जो मेरा कल आज धुंधला सा है

सिर्फ कुछ देर की बात है

अभी ज़रा देर का कोहरा सा है

धुंध जब ये झट जाएगी


एक उजली सुबह नज़र आएगी

बिखरेगी सूरज की किरण फिर से

ये ग्रहण सिर्फ कुछ देर का है

अभी जो अंधेरा ढीठ बना फैला हुआ है


तुम्हें नहीं पता,वो तुम्हें आजमाने

पर तुला हुआ है

इस अंधेरे को चीर उसे दिखलाओ

तुम्हारी काबिलयत पर उसे शक सा है


ये माना, मंजिल तक पहुँचने के

रास्ते कुछ तंग हो गए हैं

हसरत थी जिनके साथ चलने की,

उनपे चढ़े मुखौटों को उतरता देख,

हम दंग हो गए हैं


सही मानों में तू आज,

इस वक्त का शुक्रगुज़ार सा है

राहतें भी मिल जाएगी एक दिन,

अभी तू थोड़ा सब्र तो रख


जो तुझे आज हारा हुआ समझते हैं

उनको एक नए कल से मिलवाने,

की तड़प दिल में लिए, चलता चल


टूट कर बिखरे थे तुम कभी,

ये दास्ताँ, सुनने को तेरा कल बेक़रार सा है।


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