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Bhavna Bhatt

Abstract

4  

Bhavna Bhatt

Abstract

विलुप्त होता लोकतंत्र

विलुप्त होता लोकतंत्र

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अनोखा विशाल और गहरा लोकतंत्र है,

डूब जाता है जिसमें राजकारण की नाव।


शरम सा कार्यभार की वजह से डुबा,

सुकून कहां है जिसमें लोकतंत्र कहा जाये।


पाक और पवित्र था ये लोकतंत्र हमारा,

पावन होता था जिसमें बसा हर भारतीय मेरा।


ईधर उधर की फ़िक्र होने नहीं देता था,

अविरत तैरता था जिसमें जहाज में भरोसा मेरा।


पंख काट लिया जीवन आकाश में उडने का,

लोकतंत्र खत्म हो चुका आज कोई सुरक्षित नहीं।


नदी के पानी सा निर्मल लोकतंत्र था कभी,

घृणा और रंजिशें की वजह से डुबा लोकतंत्र हमारा।


बेसबब और लाचार हो गए आज ईश देश में,

निशब्द खामोश बनकर रह गया लोकतंत्र हमारा।


सात सुरों की संगम सी सजी सरगम थी कभी,

सारे सूर को तोड फोड़ कर भूल गये लोकतंत्र हमार।


नितनये नुस्खे निकालकर लोकतंत्र को खेल बना दिया,

स्वतंत्रता से जीने का हक छीन लिया हमारा।


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