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Vinita Singh Chauhan

Inspirational

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Vinita Singh Chauhan

Inspirational

विकलांग

विकलांग

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विकलांगता अभिशाप नहीं,

विकलांगता कोई पाप नहीं,

कभी हारकर, इससे जीवन में,

मौत स्वीकारना चुपचाप नहीं।

तन की बिमारी ,

अंग की लाचारी,

न हावी हो मन में।

ताकत हौसलों की भरकर ,

विचारों को दोे उड़ान ,

छूकर ऊंचे आसमां को

खुशियां मुट्ठी में भर सकते हो।

अरुणिमा सा व्यक्तित्व बन ,

एवरेस्ट पर पहुंच सकते हो।

आत्मशक्ति के बल पर ,

तुम क्या नहीं कर सकते हो ?

ईश्वर की भक्ति, 

विचारों की शक्ति ,

रूह में समाहित हो।

मस्तिष्क में उठती भाव तंरगे,

जब मन को उद्वेलित करती हैं ,

वागेश्वरी की वीणा से राग उपजता है।

सूरदास सा व्यक्तित्व बन

फूट पड़ती , कंठ से सुरगंगा 

अंधत्व को मात दे कर ,

मनचक्षु से जग निहारो ,

आत्मशक्ति के बल पर ,

तुम क्या नहीं कर सकते हो ?

विकल अंग होवे,

या विकल होवे मन।

धीर धरो हृदय में

करो चिंतन मनन।

उर्जा संचेतना से

दृढ़ निश्चयी बन।

लक्ष्यभेद करने को

मजबूत हो मन।

अविकल अटूट इरादे,

उर्जा से ओतप्रोत तन

जीवन पथ पर प्रशस्त,

नेक कर्म से जागृत चेतन

विकलांगता कॅ॑हा अब बाधक ,

जीने के हैं कितने कारक ,

आत्मचेतना अंतर में कर जाग्रत ,

मौन तपस्वी सा होता साधक ।

मनुष्य तन से होता विकलांग नहीं ,

विकलांगता तो मन में होती है।

विकल अंग होवे,

या विकल होवे मन।

धीर धरो हृदय में

करो चिंतन मनन।


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