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Reena Devi

Abstract

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Reena Devi

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विजय श्री साथ

विजय श्री साथ

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एक अकेला थक जाता

साथ मिले आ जाती ताक़त

हर कार्य में मिले विजयश्री

अकेले जो लगती आफ़त।


मिले हवा तो चिंगारी भी

कैसे रौद्र रूप दिखाती है

मिले एक से एक की शक्ति

वो ग्यारह की हो जाती है।


मिले विजयश्री हर क्षेत्र में

कभी हारने न वे पा

करें आगाज़ मिलकर सभी

पर्वत भी फिर शीश झुकाए।


मार्ग छोड़ देती हैं नदियां

लताएं ख़ुशबू बिखराती

मिलनसार कर्मशील को

स्वयं विजयश्री वरण जाती।


हवाओं ने मोड़ा रुख़ अपना

उनके एक इशारे पर

सागर ने भी किया स्वागत मन

वानर सेना संग रामदूत आने पर।


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