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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational

विजय एव रावण

विजय एव रावण

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नौ रातों की नौ नव दुर्गा का पूजन वंन्दन आराधना आदि वासन्तीतिक हो या हो शारदीय अंत।

नारी शक्ति के रूपों की आराधना मर्म मर्यादाओं का होता शुभारम्भ।

वासन्तीतिक कि नवमी जन्म राम का उत्सव शारदे नवरात्रि में विजय दशमी राम विजय महत्व। 

उत्साह सत्य विजय असत्य पराजय उत्सव नारी के नौ रुपों के पूजन वंन्दन अभिनंदन के साथ। 

राम का आना विजय युग समाज मर्यादा जीवन के परम प्रकाशित मार्ग का दाता।

जन्म राम का युग पुकार मर्यादा पुरुषोत्तम का आना विजय राम कि सद्कर्म परमार्थ ।

जीवन का मौलिक मूल्य से नाता रावण प्रतीक अहंकार का विद्वत रावण शिव भक्त रावण परम प्रकांड।

पंडित रावण का अहंकार कि अग्नि में जल जाना

नारी के नौ रुपों का पूजन सृष्टि कि दृष्टि सात्विक सत्य आत्म बोध।

परम आत्मा का जीवन से नाता जीवन का मर्यादित सिंद्धान्त मार्ग।


नारी पूजा वंन्दन अभिनंदन राम जन्म राम नवमी राम विजय कि महिमा महत्व ।

धूल धुसित हो जाति रावण वर्ष दर वर्ष जलाया जाता लेकिन मर्यादा राम कि नहीं आती।

नारी का बचपन जीवन भय भयाक्रांत अपने भविष्य से सशंकित 

सूर्योदय से संध्या तक अपने जीवन का ईश्वर से आशीर्वाद मांगती 

माँ बाप को पता नहीं कब तक बिटिया दानवता से बच पाएगी। 

बच गयी तो दहेज के दानव कि बलिवेदी पर स्वाहा हो जाती।

बेटी नारी ब्रह्मांड की शक्ति आधी आधी कि बात छोड़ो समाज का जन्म का पहचान नहीं बन पाती। 

कहते सभी जल गया है रावण हर गली सड़क चौराहे पर मिल जाएगा जीवित रावण।

राम भरत लक्ष्मण भाई समाज का आदर्श वर्तमान में भाई भाई के लिये बिना राम के बना विभीषण।

रावण कैसे मर सकता जीवित है समाज में अहंकार स्वार्थ समाज का वर्तमान ।

रावण ने तो भक्ति कि शक्ति ज्ञान विज्ञान का पौरुष पुरुषार्थ। 


कलयुग का समाज ईश्वर का भी करता परिहास राम से बुद्ध तक

सब आज कण कण से देख रहे क्रूर मानवता का समाज।

राम व्यथित आज क्यों मारा व्यर्थ रावण को कलयुग के लिए व्यर्थ। 

राम रावण के युद्ध विजय का रहस्य राज कैसे मर सकता है रावण।

जब हर आत्मा पर रावण का राज्य लूट खसोट भ्रष्टाचार का साम्राज्य ।

रावण प्रतिनिधि सिंद्धान्त का समाज त्रेता से कलयुग द्वापर के बाद

राम कि मर्यादा कृष्ण का लोप हुआ अब गीता ज्ञान। 

निष्काम कर्म कि व्याख्या बेमतलब मर्यादा कि महिमा समाप्त अब तो रावण कंस शिशुपाल ।

चाहे जो हो बोलो चाहे जिसको कह दो अपशब्द तो साधारण सी बात ।

गाली कि तो बात ना पूछो प्रतिदिन नया नया आविष्कार अंधकार अविश्वास ।

समाज आत्मा के ईश्वर को अनदेखा करता बन रावण कलयुग में आज।



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