विचलित सा मन
विचलित सा मन
आज ह्रदय के अंतस्तल में
असहज घुटन की पीड़ा
टीस में मेरे चक्र की क्रीड़ा
घोर तमस है निरीह उजाला
शब्दो से संघर्ष लिखूँ क्या
जीवन का उत्कर्ष दिखे क्या
क्या होगा स्मृति दीप्त पुंज सा
आज मेरा मन है विचलित सा
करूँ शब्दो से रुपित उजाला
उठा कलम जज्बात लिखूँ क्या
आत्मसंतुष्टि ह्र्दय मिले क्या
टीस की पीड़ा हरे घाव सी
उसमे पड़ती पस की धार सी
क्यो अंतस्तल में उठा बवंडर
धूमिल क्यो सत्य पुंज सा
क्यो घबराहट जीवन राह में
क्यो मुक्ति का मार्ग हैं धूमिल
उठा कलम लिख पाऊँ पीड़ा
या स्वतः मन को कर विचलित
नही पथ प्रशस्त मुझे हैं दिखता
क्यो बवंडर का उठा है रेला
सत्य दबा क्यो जीवन राह में
उसको उकेरने चली कलम हैं
क्या कर पायेगी उससे मुक्त
क्या होगा जीवन संघर्ष रिक्त
मन मेरा विरक्त ओर विचलित
मिली दिशा फिर मुक्ति पथ पर
चल अपना सर्वश्रेष्ठ छोड़कर
निरीह राह उन्मुक्त धरा पर
उड़ जाएगा कैदी बंदी
जीवन डगर मिलेगी फिर से
नव जीनव का मुक्त उजाला
फिर होगा नव दिवस निराला
मिट जाएगी घुटन की पीड़ा
फिर से मिलेगी नव जीवन यात्रा।