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"निर्मूणी"@ संजीव कुमार मुर्मू

Comedy Drama Inspirational

4.5  

"निर्मूणी"@ संजीव कुमार मुर्मू

Comedy Drama Inspirational

वे बिक गए

वे बिक गए

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वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


पूंजीवादी का दौर

क्या नहीं बिकता

आजकल बिकने का खेल

वैश्विक बाजार की जरूरत


बिकने की कला

जिसे आई रातों रात 

जीरो से हीरो बनजाता


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


बिकने के खेल मे चतूर

गंजे को कंघी बेजते

बस कुछ ताव भाव

झुकाऊ की ओर

मजाल किसी की

कोई बिकने से रोके


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


दसों दिशाओं गुलजार बाजार

कुछ ना कुछ बिकने को सजा बाजार

कोई खेल के माध्यम से

कोई खेल खेलकर बीके


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


होनहार बिरवान नवजवान

बेरोजगारी के नाम

जॉब फेयर या कॉलेज प्लेसमेंट में बीके

आखिर अपने भाव का मान

थोड़ा बहुत बिकना ही पड़ता


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


नेता बिकता पाने को टिकट

पूरी तरह बिकता

नाम होता जनता की सेवा

मण्डी की बात करते

सिर्फ राजनीति की ही नहींं

और भी कई तरह की मण्डी


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


अनाज सब्जी पालतू पशु

होगाई पुरानी बात

बेरोजगार व बड़े पैकेज की मण्डी

नए जमाने की मण्डी

प्रतिभावों की बोलियां

कुछ असली होती

कुछ जोड़ तोड़ जुगांर से आते


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


रुपए और आदमी की

मूल्य घाटे जैसे जैसे

नई नई प्रतिभाये बीके को बढ़े

पुराने खनकदार सिक्के

कम दिखते बाजार

जो थोड़े बचे नए सेठों ने

मार्गदर्शक मंडल रूपी लॉकर

बंद है कैदियों की तरह


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


कुछ सिक्के बरसों बैठे

ना मिला कोई खरीदार

बार बार बिकने की तख्तियां ले

खड़े ट्यूटर बाजार

पर इन्हे कहकर लौटते

पहले बाजार भाव बढ़ाओ

फिर आना बिकने को

बेचारो को पता ही नहीं

कैसे बढ़ता है भाव


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


शायद डिजिटल कैरेंसी मालूम नहीं

सोशल मीडिया से है दूर

नहीं तो कब के बिक जाते

उदय हुआ सोशल मण्डी

पूंजीवाद बाजारवाद स्वर्णिम काल

"१२साल में घूरे के भी दिन फिरे"

सच होती लोकोक्ति


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


कंडे से कलम तक

शान से बीके इस मण्डी

सोशल मीडिया की मंच

बार बार बिकनेवाले

बिकना उनकी मजबूरी

बेचारे नहीं बीके तो

फिर करेंगे क्या ?


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


आखिर कब तक विपक्ष में बैठे

लोकतंत्र के बाजार में

रहने की है आदत


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


बड़े सेठों के हाथ ही रहना

पसंद आए सबभी

प्रौढ़ मित्र का तर्क

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"

जिंदा रह कर 

करनी जनता की सेवा

वे बिक रहे


वे बिक गए

बिकना ही था

जैसे तैसे भी

"जो बिका बच गया"


निर्मुणी@संजीव कुमार मुर्मू


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