Deepti Khanna

Classics

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Deepti Khanna

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उस कुंज में

उस कुंज में

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महक रहा है कुंज मेरा,

अपितु संपन्न हुआ श्रम मेरा

दर्शनीय है इसकी चारु,

कु दृष्टि डाले ना कोई नर-नारी।


हर वक्त है इसको

संभाल के रखना, 

इस के हर फूल को

बिखरने से बचा के रखना।


 कष्ट के अबुंद

आए ना इस पे

धूप, छांव और वर्षा से

इसक पोषण मैंने ही करना।


लक्ष्य पूर्ण कर,

पुष्पाण्ड मिला है मेरे श्रम को,

हर पुष्प खिल रहा है

कुंभ का मेरा,

आनंद विभोर हो गया कुंज मेरा।


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