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Gurpreet Singh

Tragedy

4.5  

Gurpreet Singh

Tragedy

उम्र के तजुर्बे

उम्र के तजुर्बे

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उम्र के तजुर्बे ने हमें शब्दों की कीमत सिखायी है, 

अब खामोशियों से हमें जरा भी डर नहीं लगता... 


ये ईमारतें मेरी बचपन की यादों की कब्र पर खड़ी हैं, 

कम्बख्त ये शहर भी अब अपना शहर नहीं लगता... 


चेहरा हो या जिस्म वक्त के साथ सब बदल गया, 

मगर तुम पर तो जरा भी उम्र का असर नहीं लगता... 


उदासी जो मन में हो तो चंद कदमों में हाँफ जाते हैं, 

पर तुम्हारे साथ मीलों चलना भी लंबा सफर नहीं लगता.. 

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यूँ तो ऐशोआराम के इंतजामों से भर रखा है इसे, 

पर माँ तुम नहीं हो तो ये घर अब घर नहीं लगता... 


एक अरसे से बिन शर्तों के जो हमें मोहब्बत किये जा रहा है

जाहिल दिल तुझे वो इंसान क्यों हमसफर नहीं लगता... . 


खूबियाँ जरूर हैं उसमें, इससे इंकार नहीं करते हम

पर तुम्हें चाहे मेरी तरह, पागल वो इस कदर नहीं लगता.


महफिल में मुलाकात हुई तुम्हारे महबूब से हमारी भी

बाकी तो ठीक है पर मिज़ाज से वो हमें शायर नहीं लगता।


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