उद्गार
उद्गार
मन कोमल है
भाव हैं ऊंचे
करुणा कर जाने
को मन करता है!
संत अनेकों
इस जग माही
भगवन!
पर तेरे चरणों में
बस जाने को
मन करता है।
जीवन छोटा
कर्म शेष है
जग से तर
जाने को
मन करता है!
यूं ही गवाया
जीवन सारा
समझ न पाया
मैं "जग का सारा"
अब मुक्ति पाने
को मन करता है!
काश!
सत्य को
जाना होता
जीवन को
पहचाना होता,
आज अमूल्य इस
योनि को यूं ही
व्यर्थ गवाने का
ऐसा पश्चाताप
न करना होता !
