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Vinay kumar Jain

Others

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Vinay kumar Jain

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वैराग्य

वैराग्य

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हृदय के भाव उमड़ गए

बनकर मेघ बरस गए..

सोचा था बहुत पर भटक गए;

गुरु शरण में आकर बस गए;

चरणों में समर्पित हो गए..

पर रह - रह कर मन की व्याकुलता में

तूफान न पल भर शांत हुआ।

परमात्म सिद्धि प्राप्त हो जाए

अंत में जागृत ज्ञान हुआ,

क्यों न तप कर आत्मा मुक्त हो जाए,

सिद्धों में जाकर सिद्ध हो जाए।


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