'महा-विभूतियां'
'महा-विभूतियां'
जन्म मिला सौ बार हमें
हर बार ही जलकर राख हुए
घेर लिया कर्मो ने हमें।
जग से न अब तक पार हुए।
वे कितने त्यागी-तपस्वी थे
वे कितने पुण्य-प्रभावी थे
वे सभी के हृदय सम्राट बने
जो सारे जग पथ प्रदर्शक थे
जिसने भी आत्म साध्य किया
करुणा कर बन उपदेश दिया
वे स्मपूर्ण सृष्टि उद्धारक थे
जीवों के कष्ट निवारक थे।
ऐसे ही वीर साहसी योद्धा
इस धरती पर आते रहें हैं
जिन्हें कोई न अपनी चिंता थी
बस जग चिंतन में रहते थे।
