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Vinay kumar Jain

Abstract

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Vinay kumar Jain

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_____________"प्रभु की महिमा"_____________

_____________"प्रभु की महिमा"_____________

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छोड़ कर सारा जहां, तू उसके दर पे जा.!

दर्द तेरे जो भी हों, तू उसको जा बता!*


छोड़ सारे लफड़े-झगड़े,

छोड़ कर सारा जहां!

एक बार उसके दर पे जा,

दर्द तेरा जो भी हो,

वो सुनेगा उसको बता!


निश्चय ही उसकी शरण में

चैन तुझको मिल सकेगा।

तेरे सब जन्मों के कर्म और

पाप-पुण्य हो या धर्म।

उससे तो कुछ छिपा नहीं है,

तेरे राज हों या हों मर्म।


जा चला जा छोड़ कर,

अब वक्त यूं न गवां!

जिस तरह भी हो सके,

उसको तू अपना बना!


वो बन गया एक बार तेरा,

तो तू भटकना छोड़ देगा।

तू उसी का नाम जप ले,

हर कदम तेरा साथ देगा!


माना तेरा न कोई पिता,

और न तेरा अपना सगा

पर मान ले और समझ ले

तू भी इतना,- वो है,सबका पिता!


उसके सिवा न कोई ऐसा

जो खुद जिए,जीने दे सबको।

न कभी वो मरा है और

न वो कभी मर सकेगा,

वो अजर अमर है अब

कर्म से निष्कर्म है अब।


देख कर मूरत उसकी उसके नाम से ही काम चलता।

सच्चे दिल से मन में बसा ले फिर देख वो तेरे साथ चलता


है करिश्मा वो ही कुदरत

कुछ नही उसके सिवा!

चाहे पालन हार समझ ले

चाहे समझ ले परम पिता!!




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