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Mahima M

Romance

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Mahima M

Romance

उड़ते रहो...

उड़ते रहो...

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तुम थे पतंग

मैं धागा

चाह नहीं थी कि तुम्हारे

पैरों की बेड़ी बन जाऊं

चाह थी तुझे मुक्त करने की

चाह थी देखने की तुझे

और ऊपर उड़ते हुए

आसमान में फहरने वाले को

मिट्टी से मिलाकर

पा क्या लूॅंगी मैं ?"



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