तू और मैं
तू और मैं
मैं दिपक की बुझती लौ सा
वो तेज हवा का झोंका सा
मैं कच्चे मिट्टी के बर्तन सा
वो बूँदो के झरोखे सा
मैं कश्ती कोई मझधार बीच
वो मदमस्त लहर कोई
मैं एक मुसाफिर भटका सा
वो बिसरी यादों का शहर कोई।
मैं दिपक की बुझती लौ सा
वो तेज हवा का झोंका सा
मैं कच्चे मिट्टी के बर्तन सा
वो बूँदो के झरोखे सा
मैं कश्ती कोई मझधार बीच
वो मदमस्त लहर कोई
मैं एक मुसाफिर भटका सा
वो बिसरी यादों का शहर कोई।