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सौरभ कृष्णवंशी

Abstract

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सौरभ कृष्णवंशी

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संघर्ष

संघर्ष

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कर परिश्रम इतना की सुर्ख पड़े पसीने में,

न संघर्ष, न तकलीफें तो क्या मजा है जीने में,


तूफान भी झुक जाएगा, पवन भी थम जाएगा

काल भी रुक जाएगा जब लक्ष्य रहेगा सीने में। 


खुद से कुछ कर ऐ मेरे दोस्त, 

अब सहारा लेना छोड़ भगवान का। 


जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का, 

फिर क्यूँ देखना कद आसमान का। 


कर्म किये जा और जिये जा,

मत सोच क्या खोया क्या पाया।


जिस दिन उडेगा ईस सांसारिक पिजडे से,

कर्म ही बनेगा तेरा साया।


कर परिश्रम इतना की सुर्ख पड़े पसीने में,

न संघर्ष, न तकलीफें तो क्या मजा है जीने में।


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