Madhusudan Shrivastava

Inspirational

4.5  

Madhusudan Shrivastava

Inspirational

तुम जड़ बनो

तुम जड़ बनो

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खींचकर  जल रेत से  नित,

पौध  को  वो तरल  देता।

कीच   में   रहकर  स्वयं,

पादप को है, वो अमिय देता।


ना ही डिगता, ना ही थकता,

प्रकृति के  वह  कोप  से।

ख़ुद  धरा में धूल  होकर,

शाख  को  अवलंब  देता।


धूलकण  से  गंध  लेकर,

पुष्प  को  अर्पित  किया।

वह स्वयं जड़  ही  रहा,

पर पुष्प को पोषित किया।


पुष्प से खुशबू जगत में,

वो  सदा  कहता   रहा।

पल्लवित उस पुष्प को ही,

पुण्यतम  घोषित  किया।


है सदा  सहता  रहा वो

मौसमी   संताप  को।

कर्म  से  करता  रहा,

पूरित सृजन की आस को।


पर्णकुल को वो हरित कर,

पोषकों  से  भर  दिया।

जड़ था, पर जीवन दिया,

हर जीव को, हर सांस को।


चाहते  गर  मोक्ष  तो,

तुम बेघरों का घर बनो।

पीड़ितों का, निर्बलों का,

शोषितों का  स्वर बनों।


चाहते   गर  ईश  को

अमरत्व  पाना  विश्व में।

भूमि से जुड़ जाओ और

निजभाव से तुम जड़ बनो।


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