तुम हो...
तुम हो...
तुम हो
उदास सी सुबह
एक ख्याल
और मेरा मुस्कुराना
वो ख्याल तुम हो
यूंही कभी चलते चलते
मेरा ठहर जाना
मुड़कर देखना पीछे
मुझे याद तुम हो...
बारिशों वाले मौसम में
बादलों में झिलमिलाना
बदलना रंग पल पल में
मेरा आसमान तुम हो...
ठहरी सी सर्द रात
चमचमाता चांद
एक टूटता सितारा
हर बार तुम हो...
मेरा यूं हंसते जाना कि
आंखें छलक जायें
छलकती आंख के आंसू
बेहिसाब तुम हो...
अधूरी ही सही माना
मगर खूबसूरत है
जिक्र मेरा भी है जिसमें
वो बात तुम हो...
बेमौसम ख्वाहिशों के
दिल में मोती बनाना
बरसना दिल के आंगन में
बरसात तुम हो...
किसी पहचानी सी खुश्बू का
मुझे छूकर गुजर जाना
वो एक पल साथ होने का
अहसास तुम हो...
जिदंगी के परचे में
अधूरा जवाब लिख आना
बहुत मुश्किल सा था समझना जो
वो सवाल तुम हो... !

