खत
खत
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तूने एक रोज कहा था कि
तू मुझे खत लिखेगा
तेरे उस खत का इंतजार
उस पल शुरू हुआ और
दिन महीने और सालों की
गलियों से गुजर कर
वक्त के अंतिम गलियारे में
आ पहुंचा है
जानती हूं कुछ ही समय में
तेरे खत का यह इंतजार
वक्त की सीमा से निकल कर
अनंत की सरहद में पहुंच जायेगा
अक्ल कहती है कि तेरा कोई खत
मेरे नाम नहीं हो सकता
क्योंकि तेरे खत और मेरे
इंतजार के बीच
ना तो वादे का कोई रिश्ता है
ना ही रस्म की कोई डोर
मगर कहीं पढ़ा था कि दिल की
आँखें बहुत गहरी होती हैं
और इन्ही आँखों से तो एक रोज
मैंने चुपके से तेरी आँखों में
तेरे उस खत की इबारत को पढ़ा था
इसलिये मैं जानती हूं
कि तूने एक खत मुझे लिखा है और
वक्त की सीमा से निकलने से पहले
तेरा वो खत
मेरे इंतजार का जवाब बनकर आयेगा !