STORYMIRROR

Amit Kumar

Abstract

3  

Amit Kumar

Abstract

तुम ही हो....

तुम ही हो....

1 min
271

एक अंधेरा जो मेरे

उजालों को निगल रहा है

उस अंधेरे से

डर नहीं लगता।


दहशत-ए-गरदा

इस बात पर आमादा है

जो मेरे अलाव में

सुलग रही आंच है।


उसका ज़रिया तूुुम ही हो

वो अंधेरा मेरे मन में

जो तनाव है

जो अलगाव है।


जो अनर्गल भाव है

जो अपरिपक्वता है

जो प्रलाप है

जो अधर्म है।


जो वेदना है

जो मतभेद है

जो तोड़ता है

जो टूटता है आदि

सब एक वहम है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract