तुम ही हो....
तुम ही हो....
एक अंधेरा जो मेरे
उजालों को निगल रहा है
उस अंधेरे से
डर नहीं लगता।
दहशत-ए-गरदा
इस बात पर आमादा है
जो मेरे अलाव में
सुलग रही आंच है।
उसका ज़रिया तूुुम ही हो
वो अंधेरा मेरे मन में
जो तनाव है
जो अलगाव है।
जो अनर्गल भाव है
जो अपरिपक्वता है
जो प्रलाप है
जो अधर्म है।
जो वेदना है
जो मतभेद है
जो तोड़ता है
जो टूटता है आदि
सब एक वहम है।