तुम चुप हो गई ऐसी क्या मज़बूरी
तुम चुप हो गई ऐसी क्या मज़बूरी
तुम चुप हो गई ऐसी क्या मज़बूरी है,
तुम्हें नही पता क्या तुमने मेरी कितनी नींद तोड़ी है,
कितनी रातें तेरी याद में मैने जग कर गुजारी है,
कितनी पहर मैंने यूँ ही सड़को पे तेरी राह निहारी है,
कितनी दफा तेरी तस्वीर पे अपने आसू बहाएं है,
तुमने कहा था तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी फिर इतनी क्यों दूरी है,
तुम चुप हो गई ऐसी क्या मज़बूरी है ।
तुमने कहा था साथ जायेंगे इस दुनिया से,
साथ बैठ के आसमां को निहारेंगे और मुस्कुराएंगे,
चुप रहेंगे लेकिन नजरों से हर दर्द बयां करेंगे,
हाथों मे हाथ डाल कर सारा जहान् घूम कर आएंगे,
लेकिन फिर मेरी जिंदगी मे तेरी जगह क्यों अधूरी है,
तुम चुप हो गई ऐसी क्या मज़बूरी है।

