तुम और मैं
तुम और मैं
मैं अकेला चल रहा था
बेखबर तन्हा था,
अपनी ही उलझनों में
उलझा सा
न कोई साथ था
न ही कोई साथी
फिर तुम मिली और
जिंदगी बदल गयी
मैं अकेला एक था
तुमसे मिलकर ग्यारह हो गया
मंझधार में था सफर मेरा
अब हमारा आशियाना किनारा हो गया।
मैं अकेला चल रहा था
बेखबर तन्हा था,
अपनी ही उलझनों में
उलझा सा
न कोई साथ था
न ही कोई साथी
फिर तुम मिली और
जिंदगी बदल गयी
मैं अकेला एक था
तुमसे मिलकर ग्यारह हो गया
मंझधार में था सफर मेरा
अब हमारा आशियाना किनारा हो गया।