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Nandini Upadhyay

Abstract

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Nandini Upadhyay

Abstract

तुम और मैं

तुम और मैं

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मैं अकेला चल रहा था

बेखबर तन्हा था,

अपनी ही उलझनों में

उलझा सा


न कोई साथ था

न ही कोई साथी

फिर तुम मिली और

जिंदगी बदल गयी


मैं अकेला एक था

तुमसे मिलकर ग्यारह हो गया

मंझधार में था सफर मेरा

अब हमारा आशियाना किनारा हो गया।


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