टूटना
टूटना
हम
जब भी
ऊपर से टूट जाते हैं
असल मे देखें तो
अंदर से नए हो जाते हैं।
वो जगह जहां से
टूटते हैं, वहां से
आत्मबल का का स्राव रिस कर
ठूंठ पर आवरण चढ़ा देता है,
वास्तविकता के तिक्त रस से ,
प्रकृति नया रंग रोगन कर देती है।
टूटा सिरा,
सच की धूप,
समय का पानी पा कर
एक नई कोपल उगाता है ।
कलियां फूटने लगती हैं,
सुवासित रंगों को आते
समय के इंद्रधनुषी मधुकर
पराग ले बिखेरते है।
हमारा टूटना
बेकार नहीं जाता,
एक नया उपवन बन ही जाता है
हमारी उस बाहरी टूटन से।