टीस
टीस
ज़िंदगी भर मै स्वयं से ही रुठा रहा ,
खुशी के पलों में भी मै टूटा रहा ।
आज मेरी कब्र में भी मुझे सब्र नहीं ,
जी चाहता है उठ जाऊं और फिर स्वयं से रूठ जाऊं ।
धीरे-धीरे ही सही पर मौत अच्छी लगने लगी है,
मृत्यु जीवन से सच्ची लगने लगी है।
क्यूं ना जीवन के कई फटे-पुराने भावों को
मृत्यु के सच के सुई-धागे से सी लूं?
कम से कम मृत्यु के ही कुछ पलों को खुशी से जी लूं ।
