STORYMIRROR

Aditya Pandey

Abstract

3  

Aditya Pandey

Abstract

टीस

टीस

1 min
69

ज़िंदगी भर मै स्वयं से ही रुठा रहा ,

खुशी के पलों में भी मै टूटा रहा ।

आज मेरी कब्र में भी मुझे सब्र नहीं ,

जी चाहता है उठ जाऊं और फिर स्वयं से रूठ जाऊं ।


धीरे-धीरे ही सही पर मौत अच्छी लगने लगी है,

मृत्यु जीवन से सच्ची लगने लगी है।

क्यूं ना जीवन के कई फटे-पुराने भावों को

मृत्यु के सच के सुई-धागे से सी लूं?

कम से कम मृत्यु के ही कुछ पलों को खुशी से जी लूं ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract