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Sukhbir Singh Alagh

Abstract

4  

Sukhbir Singh Alagh

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ठहर जा, कुछ पल ऐ ज़िन्दगी

ठहर जा, कुछ पल ऐ ज़िन्दगी

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ठहर जा, कुछ पल ऐ ज़िन्दगी 

क्यों, इतनी तेजी से गुजर रही है।

लम्हा लम्हा, हर घड़ी 

बीती यादों में, बदल रही है।


ठहर जा, कुछ पल ऐ ज़िन्दगी 

क्यों, इतनी तेजी से गुजर रही है।


कितनी प्यारी यादें, सँजोए बैठा है ये दिल।

वक़्त के मिले गमों को, छुपाए बैठा है ये दिल।


बिछड़े गए, जो अपने हमसे 

आज उन सबकी, याद आ रही है।


ठहर जा, कुछ पल ऐ ज़िन्दगी 

क्यों, इतनी तेजी से गुजर रही है।

लम्हा लम्हा, हर घड़ी 

बीती यादों में, बदल रही है।


ठहर जा, कुछ पल ऐ ज़िन्दगी 

क्यों, इतनी तेजी से गुजर रही है।


कितने ही नए रिश्ते बने, कितने ही रिश्ते टूट गए।

कितने ही जो चाहने वाले, बीच सड़क में छूट गए।


एक एक करके, ऐ ख़ुदा 

हम सबकी, बारी आ रही है।


ठहर जा, कुछ पल ऐ ज़िन्दगी 

क्यों, इतनी तेजी से गुजर रही है।

लम्हा लम्हा, हर घड़ी 

बीती यादों में, बदल रही है।


ठहर जा, कुछ पल ऐ ज़िन्दगी 

क्यों, इतनी तेजी से गुजर रही है।


आने वाला कल, ना जाने कैसा होगा।

कौन कौन अपना, पास होगा 

कौन पास होकर भी दूर होगा।


"अलग" आजकल के रिश्तों में 

क्यों इतनी गिरावट आ रही है। 


ठहर जा, कुछ पल ऐ ज़िन्दगी 

क्यों, इतनी तेजी से गुजर रही है।

लम्हा लम्हा, हर घड़ी 

बीती यादों में, बदल रही है।


ठहर जा, कुछ पल ऐ ज़िन्दगी

क्यों, इतनी तेजी से गुजर रही है।


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