तन्हा
तन्हा
तन्हा होता हूँ
तो प्रेम चला आता है
जाने कहाँ से
कभी आप की चाहत की गली से
कभी किसी मुस्कराहट के आगोश से
कभी किसी सोच के दामन से
कभी युद्ध के मैदान से
कभी समुद्र में उठती हुयी लहर से
कभी आग के धधकते हुए गोले के मध्य से
तन्हा होता हूँ
तो प्रेम चला आता है
फ़िक्र मन्द इतना की
फ़िक्र नहीं खुद की
जैसे हवाले है समय के
और समय
और समय भी उसके बिना
कहाँ मिलता है किसी को
एक पल भी।
तन्हा होता हूँ
तो प्रेम चला आता है
उतार कर फेंकता हूँ
उदासी का चोला
और गुनगुनाता हुआ
वही पुराना गीत
तुम हो तो आशा
तन्हा होता हूँ
तो प्रेम चला आता है
जैसे खाली दिमाग
खुदा का घर
न कोई दीवाल
न कोई छत
न कोई आतुरता।
न कोई कमिटमेंट
जैसे कि आना ही
होना है।
नया प्रेम
होगा करोगे तब भी
न करोगे तब भी
जैसा की है।