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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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हे माँ! यूँ न आया करो

हे माँ! यूँ न आया करो

2 mins
396


हास्य व्यंग्य

हे माँ! यूँ न आया करो

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हे जगत जननी आदिशक्ति माँ

तुम्हें प्रणाम नमस्कार है

इच्छा हो तो स्वीकार करो

न करो तो भी चलेगा,

पर मेरी एक बात गांठ बांध लो

आपका यूँ आना हमें स्वीकार नहीं है,

नवरात्रि में आने की आपको आने की

आखिर इतनी उत्सुकता क्यों रहती है?

माना कि आपका मन भी हिलोरें मारता होगा

हम जैसे बेशर्म नौटंकीबाज भक्तों पर भी

अपनी करुणा बरसाने का बहुत मन करता होगा।

पर मैय्या थोड़ा संयम रखा करो

अब इतना भी बेचैन न हो जाया करो,

अपना महत्व खुद ही न घटाया करो

हमारे मन के भावों को भी समझा करो,

बेवजह अपना समय न गँवाया करो।

हम तो मजबूरी में नवरात्रि का पर्व मनाते हैं

तुमको ही नहीं दुनिया को भी भरमाते हैं

शायद आपको पता नहीं है

हम बस औपचारिकता निभाते हैं

क्योंकि हम खुद को भी बरगलाते हैं,

भक्त होने का आवरण ओढ़ नाटक दिखाते हैं।

हे माँ! हम पूरी ईमानदारी से बताते हैं,

पूजा पाठ के नाम पर सिर्फ दिखावा करते हैं

अपने को तुम्हारा बड़ा भक्त दिखाने के लिए

तुम्हें तो बस हम माध्यम बनाते हैं

इसीलिए आपको बेवजह नहीं बुलाते हैं,

एहसान मानो हम आपको तंग नहीं करते हैं।

इसलिए आप यूँ ही न चली आया करो

हमारे दिमाग का बोझ न बढ़ाया करो,

कम से कम इतना तो सोचा लिया करो

कि हम भी यदि सच्चे और ईमानदार हो गये तो

फिर हमारा तो भौकाल घट जाएगा,

शायद आपका प्रभाव भी घट जाएगा।

ऐसा करने से आखिर तुम्हें क्या मिल जाएगा,

क्या धरती रत्न का सम्मान तुम्हें मिल जायेगा?

हे माँ! इच्छा हो तो हमें माफ करो

करना हो करो या न करो

पर अपनी दया कृपा करुणा अपने पास ही रखा करो

बस यूं ही जब मन में आये तो भी

मन को मार कर खुद को समझाया करो।

हम तो दुनिया को बरगला ही रहे हैं

महज नाटक ही तो कर रहे हैं।

झूठ मूठ ही आपको नमन वंदन करते हैं,

कम से कम आप तो हमें यूँ न लुभाया करो

हमारी रामलीला जैसे चल रही है चलने दो

बस अपने धाम में रहकर अपनी चलाया करो,

बस हम जैसे भक्तों की खातिर

हे जगत जननी! अपना समय यूँ न व्यर्थ गंवाया करो

और जब तब न चली आया करो।

हे माँ! अपनी कृपा करुणा बरसाने की बड़ी उत्सुकता है

तो बैठे बैठे जी भरकर बरसाया करो,

हे माँ! कभी कभार तो इस भोले भक्त की बात

आखिर मान भी जाया करो,

और यूं ही न आया करो। 



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