तकरार ऐ मोहब्बत
तकरार ऐ मोहब्बत
जो बोल दूँ दो शब्द भी तो, तुझे वो जाने क्यों बेमतलब पैगाम लगता है।।
जो मांग लूँ एक अर्ज़ भी तो , तुझे वो सारा आसमान लगता है।।
क्या ! डर हैं तुझे खुद के गलत साबित होने का ??
तो मेरा हर जवाव तुझे , क्यों इल्जाम लगता है ।।
वो कहता है, आज क्यों बदल लिया सलीक़ा शौक अन्दाज़ हमने ,
बैठ कर कभी देखा होता , आँखों में मेरी झांक कर ,
इन्हें तू मेरा सारा जहां लगता है ।।
फेर बदल करना उलझना उलझाना बातों को, हुनर है तेरा ,
जो बेलफ्ज़ खड़ा सामने तेरे, बता वो तेरा क्या लगता है।।

