सोच - एक नींव
सोच - एक नींव
मैं वो नहीं जो तुमने देखा, मैं तो तुम्हारी सोच हूँ
मैं कर्कश आवाज़ तुम्हारी, मै ही मधुर संगीत हूँ
जो बुन सके तुम तो बिछोना घर का, वरना फटी चादर हूँ
मैं वो नहीं जो तुमने देखा, मैं तो तुम्हारी सोच हूँ।
मैं दिखने में बिलकुल वेसी, जैसा तेरा ज़ेहन है,
मैं सुनने में बिलकुल वैसी, जैसे तेरे शब्द है,
गलत दिशा के साथ रहूँ तो, मैं रावण बन जाऊँगी,
सही दिशा में ले जाओगे, राम नाम कहलाऊँगी।
जो ढूँढोगे बहार मुझे तो, तुमसे न मिल पाउँगी,
जैसी सोच को पालोगे, मैं वैसा रूप दिखलाऊँगी,
सोच पावन तो गंगाजल हूँ, वरना ज़हर बन जाऊँगी,
कहते है रूह मुझे, तेरे अंदर ही पाई जाऊँगी।
