तिरंगे की धार से
तिरंगे की धार से


तिरंगा बोले कवी से, ऐ मेरे दोस्त!
कुछ मेरा हाल भी सुन ले
मेरे दर्द का एहसास भी कर ले
कुदरत के इंद्रधनुष में लहराया
कभी ग़मों से बोझिल हो जाता हूँ
जब शहीदों के पवित्र शवों में
लपेटा जाता हूँ मैं
मेरा श्वेत रंग शांति और सच्चाई
का मार्गदर्शक है
फिर क्यों मैं उदास हो जाता हूँ
गोलियों से छलनी हो जाता हूँ मैं
अपने सम्मान और गौरव को
लुप्त पाता हूँ मैं
क्या मेरे शरीर के रंग
फीके तो नहीं पड गए?
हर बच्चा मुझे देख फहराता
बड़े प्यार और बहादुरी से
ऐ मेरे दोस्त, मैं इतना कमजोर नहीं
मै कोई मामूली ध्वज नहीं
मेरे राष्ट्र ध्वज का गौरव
मुझे महावीरों ने दिलवाया
मेरे केसरिया कवच की ललकार
दुश्मनो को धुल छठा देंगे
मेरा श्वेत रंग हर जुल्म का जवाब
शांति और सच्चाई की राह पर देंगे
मेरा हरा रंग विकास का प्रचारक है
उम्मीद से आगे अग्रसर होते रहेंगे
मुझे थाम लो अपने हाथो में
मैं देश का स्वाभिमान हूँ
कभी न शीश झुकेगा मेरा
एकता और अखंडता की गूंज से
मैं विजयी हूँ, विजेता रहूँगा
मैं हूँ तिरंगा, इस महान देश का
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द!