थोड़ा -सा
थोड़ा -सा
आओ, थोड़ा जी लेते हैं
जीवन विष का प्याला है,
अमृत कर के पी लेते हैं।
मौत तो आनी है एक दिन
उससे पहले, आओ थोड़ा जी लेते हैं।
कितना खुद को, मारा पल- पल।
जीवन में सब ,हारा पल -पल।
जो बचा हुआ है उसको
आओ हाथों में भरकर
सारी तमन्नायें पी लेते हैं
आओ थोड़ा जी लेते हैं।
किसका था इंतजार हमें ।
क्या पाया जीवन का सार ...
प्रिय दिन आते- जाते रहते हैं
सार्थक भी निरर्थक हो रहते हैं।
फिर क्यों भागम- भाग .....प्रिय।
हम शून्य हुए जाते हैं
मर- मर कर जिए जाते हैं
आओ थोड़ा -सा ,सच में जी लेते हैं।
जीवन विष को ,अमृत कर पी लेते हैं।