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vaibhav mishra

Abstract

4.4  

vaibhav mishra

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था कहीं अब हूँ नही

था कहीं अब हूँ नही

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139


था कहीं अब हूँ नहीं,

अब हूँ जहाँ, लोगों को ख़बर नहींं !

हो जिसे खबर मेरी, ऐसा कोई शख्स नहीं,

जो सोचा वो कभी पाया नहीं,

जो मिला वोमेरा हुआ नहीं।

ये दुनिया की नहीं ये मेरी कहानी है,

जो इस दुनिया को, मुझे ही सुनानी है,


जैसे, इंसान को इंसान नहीं मिलता,

और जो मिले इंसान

फिर रहने का कोई ठिकाना नहीं रहता,

मिले ठिकाना भी अगर तो यहां

उसके हुनर को सहारा नहीं मिलता,


इसलिए लोगों से कह कर चल दिया कि,

था कहीं अब हूँ नहीं !

अब हूँ जहां वहां की किसी को खबर नहीं।


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