"तेरी बेरूख़ी का ज़हर पिया नहीं है अब तक"
"तेरी बेरूख़ी का ज़हर पिया नहीं है अब तक"
तेरी बेरूख़ी का ज़हर पिया नहीं है अब तक
बाद उसके कोई लम्हा जिया नहीं है अब तक
दिल के नर्म हिस्से पर, चोट इतनी गहरी लगी
के ख़ुद से फिर कोई वादा किया नहीं है अब तक
वक़्त की साज़िश के चलते, चाक हुआ ये सीना इक दिन
उधड़ा हुआ है तब से हाँ सिया नहीं है अब तक
ख़ुद को ना समझने की, सज़ा कुछ ऐसी मिली
के ख़ुद पर भी ऐतबार ख़ुद किया नहीं है अब तक
नाकाम हुआ है जब से, इक काम में 'इरफ़ान'
ख़ुद को फिर कोई काम दिया नहीं है अब तक ।।
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