तब से अब
तब से अब
तब से अब,
बदल गया नभ
कितने नभचर इस तरुवर पर।
कल- कल कल- कल सुन रहा ‘अब’ मैं
यमुना में अपनी छवि देख रहा मैं।
कल भी मैं था, आज भी मैं ही हूं।
पर यह तो कुदरत की शतरंज है, बबुआ
तब जो काला ‘अब’ है गोरा।
हवा साफ है, साफ है नदियां
क्योंकि सारी बंद है फैक्ट्रियां।
बच्चे घर में ,मां बाबा भी संग में
दादी कहीं पर, कहीं दादा जी
कथा कहानी कह वक्त बिताते
पर अंत में यही कहते जाते- अरे !
यह तो ‘अब’ मैं हमरा ‘तब’ है बिटवा।।
कहीं नीलगाय नजर में, किसी शहर में दिखा बगीरा,
बीच सड़क में कहीं हिरन है-
यह शहर है? या 'जंगल बुक ' मेरे बिटवा ?
‘अब’ हम हैं अंदर और सड़क पर जंगल
अब’ यह है राजा, ‘अब’ इनकी बारी।।
कोविड ना आता तो समझ ना पाते,
तब मैं क्या-क्या खोया, क्या-क्या लूटा।
प्रकृति को जो आघात किया,
वापस उसी ने प्रतिघात किया
यह तो न्यूटन की गति का नियम है बिटवा
‘अब’ का करोना पड़ा ‘तब’ पर भारी।
अब ना करो फिर ‘अब’को खाली।
एक सूक्ष्म जीवाणु ने यह एहसास कराया
जो अब है- वही सच है- उसे ही समझो, उसे ही सीचो
और सवारों दुनिया सारी।
इस ‘अब’ को अब ‘कल’ बनाओ,
ना फिर से इतिहास दोहरओ।
