STORYMIRROR

Neeraj pal

Abstract

4  

Neeraj pal

Abstract

स्वर्ग का द्वार

स्वर्ग का द्वार

1 min
393

पता नहीं क्यों यह मन ,विषयों को ही पकड़ता है।

अभी तलक यह समझ ना पाया, यह किसकी मर्जी पर चलता है।।


 मोह रूपी विषयों में उलझ कर, भागा-भागा फिरता है।

 अगले पल की खबर नहीं, बरसों के सपने बुनता है।।


 भव-जाल ग्रसित हो कर भी, सही मार्ग पर ना चलता है।

 कष्टों भरे इस जीवन से ,बचने का उपाय फिर भी नहीं करता है।।


भले- बुरे की खबर नहीं ,अहंकार में डूबा फिरता है।

 काम- क्रोध लोभ में पड़कर भी,और थी उलझता जाता है।।


 उसकी लीला वही जाने, मन फिर भी कुछ ना समझता है।

 जरूरत है इसको कसने की, जो गुरु -शरण में ही मिलता है।।


 अगर चाहता विषयों से बचना, सतसंगति क्यों नहीं करता है।

 मन से परे है उनकी दुनियाँ, आत्म-ज्ञान वहाँ ही मिलता है।।


 रोग-मुक्त वह पल में हैं करते, काहे व्यर्थ की चिन्ता करता है।

 रे! मन" नीरज" को ले चल गुरु के द्वारे, जहाँ" स्वर्ग का द्वार" खुलता है।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract