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Poetry Lover

Abstract

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स्वदेश

स्वदेश

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मैं स्वदेशी मैं हूँ हिन्दी भाषी,

स्वदेशी चलन स्वदेशी अभिलाषी।


वतन और चमन स्वदेशी मेरा,

अंग्रेज बनाने का न सपना मेरा।


शान से स्वदेशी कहलाता हूँ,

वतन का रखवाला दिखलाता हूँ।


वाजिब स्वदेश पे कुर्बान होना,

सह न पाऊँ स्वदेश का अपमान होना।


भाषा है मेरी शुद्ध हिन्दी बोली,

देश के लिए ही भरता हूँ झोली।


जीयूँ तो बदन पर स्वदेशी वसन हो,

मरूँ भी तो स्वदेशी कफ़न हो ।


पहनूँ तो वह स्वदेशी हो कपड़ा,

लड़ूं तो देश के हित में हो वह झगड़ा।


स्वदेशी भोजन पालथी बैठ खाता हूँ,

स्वदेशी का ही एकमात्र निर्माता हूँ ।


सहज भाव से बदलूँ न अपना विचार,

विरुद्धों के प्रति बरसूं मैं जलता अंगार ।


मातृभूमि की सेवा करूँ मैं दिल से,

कहो भारत मां की जय एक बार फिर से।


हिंदुस्तान की जय जयकार हो,

अंतिम क्षण तक मेरी यही पुकार हो,


आड़े हाथ मैं किसी के बाज न आऊँ,

चीर दिल अपना उसमे हिंदुस्तान दिखाऊं।


अंत तक नारा स्वदेश सबको प्यारा,

स्वदेश नीति स्वदेश सबको प्यारा।


अगर धरती पर रहना होगा,

स्वदेश नीतियों को अपनाना ही होगा।


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