सवाल और बवाल
सवाल और बवाल
वो कहते हैं कि सवाल पूछो तो बवाल हो जाता है
सत्ता का चेहरा क्रोध से सुर्ख लाल हो जाता है
पर आश्चर्य है कि ये बात वो लोग कह रहे हैं
जो अब तक देश को जागीर समझ कर रह रहे हैं
उनका नाम लेने पर ही वे नाराज हो जाते हैं
हलके से सवाल पर ही बड़े नासाज हो जाते हैं
एक जरा सी बात पर ही देश को जेल बना डाला
लोकतंत्र को एक "खानदानी तंत्र " बना डाला
"लज्जा" को बैन करते जिन्हें कभी लज्जा नहीं आई
ऐसे लोग ही दे रहे "अभिव्यक्ति की आजादी" की दुहाई
"किस्सा कुर्सी का" फिल्म को कभी आने नहीं दिया
"द काश्मीर फाइल्स" को जिन्होंने प्रोपोगैंडा बता दिया
सारे "न्यूज चैनल" जिनके चरणों में लोट लगाते रहे
वही लोग आज "गोदी मीडिया गोदी मीडिया" चिल्लाते रहे
चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त करने का कीर्तिमान बनाया
उन लोगों को आज "लोकतंत्र खतरे में है" ध्यान आया
दिन में सौ सवाल पूछकर भी "सवाल पे बवाल" काट रहे
सत्ता सुंदरी से बिछुड़ने की छटपटाहट का मलाल बांट रहे
खानदानी लोग मंहगाई की नित नई परिभाषाएं गढ रहे हैं
"अंडे का भाव" किलो में और आटा लीटरों में पढ रहे हैं
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण का खेल खेलते रहे
साठ सालों तक ऐसे लोगों को देश वासी झेलते रहे
गीता में कर्मफल का सिद्धांत भलीभांति बताया गया है
इसीलिए दंड स्वरूप शायद उन्हें बेरोजगार बनाया गया है।