स्वाद
स्वाद
जीते जी ना दिया उन्हे भोजन,
ना ही कभी लोटा भर कर नीर,
पर मरने पर हर बार निकाला,
थाली में हलवा-पूरी और खीर।
वो तरसते रहे देखने को भोजन की थाली,
पर मिलती रहीं उन्हे उम्र भर गाली,
बुढ़ापे में ऐसा तिरस्कार
क्या इसे कहते हैं बुजुर्गों से प्यार ?
जब संपत्ति पर माँगें पूरा अधिकार,
फिर क्या जाता था उन्हे देने में प्यार ?
अब लोक दिखावे को रिवाज़ निभायें,
थाली भर कर उनका श्राद्ध सजायें।
स्वर्ग लोक पाने की खातिर,
एक थाली मंदिर में भिजवायें,
बाकी बचा सब श्राद्ध का भोजन,
स्वाद ले - लेकर भर पेट खायें।