सूरज
सूरज
रात के अंधेरे को देख,
आसमां ने "तारों" को अपनाया है।
कभी-कभी तो ये "उन्मुक्त गगन" भी,
चांद की रोशनी से नहाया है।
पर क्या कोई "सूरज" को रोक पाया है?
दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास से ही
राह की मुश्किलों से पार पाना,
हार कर भी जीत के ख्वाब सजाना,
यही तो जीवन ने सिखाया है
क्या कोई "सूरज" को रोक पाया है?
आग को अपने में समेटे,
स्वयं को जलाकर भी,
शीतलता का पाठ पढ़ाता है।
जग को रोशन करता,
नव जीवन का आधार बनता है।
सूरज से लड़कर
क्या कोई "सूरज" को रोक पाया है?
ना रुकता है, ना रुकने देता है,
विश्वास और विकास को साथ ले,
बस एक गति से आगे बढ़ता है।
सुबह की नई किरण के साथ,
जग को नित नया संदेश देता है।
क्या कोई "सूरज" को रोक पाया है?