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ca. Ratan Kumar Agarwala

Abstract Inspirational

4  

ca. Ratan Kumar Agarwala

Abstract Inspirational

सूखे पत्ते

सूखे पत्ते

2 mins
338


न रोंदना उन सूखे पत्तों को,

जो पड़े हुए हैं बेसहारा जमीन पर,

सूखे हुए, मुड़े हुए,

अपनी डाली से बिछड़ कर।


याद रखना एक बात सदा तुम,

कभी इन पत्तों ने ही धुप और बारिश में,

तुम्हे आसरा दिया था,

जीने का सहारा दिया था,

और एक विश्वास जगाया था दिल में,

प्रकृति के प्रति।

 

याद करना एक दिन,

तुमने उसी पेड़ के फलों को,

स्वाद ले कर खाया था,

बड़े चाव से,

और आज उसी पेड़ के उन निरीह पत्तों को,

रोंदने चले हो ?


कैसे हो गए तुम इतने अहसान फ़रामोश,

तुम तो कभी ऐसे न थे,

संस्कार कूट कूट कर भरे थे तुम में।

आज ऐसा क्या हो गया ?

कि तुमने उन अहसासों को बिसार दिया,

उन सूखे पत्तों को भी रोंदने चले थे ?

 

याद करो वह दिन,

जब तुमने ईंट गारे से नया घर बनवाया था,

मजदूरों को काम पर लगाया था,

जिन मजदूरों ने दिन रात मजदूरी कर के,

अपना कतरा कतरा पसीना बहाकर,

तुम्हारे लिए एक आशियाना बनाया था,

आज वही मजदूर बेघर है,

तुमने उन्हें पूरी मजदूरी भी न दी थी।

 

कभी तुम पत्तों को रोंदते हो,

कभी मजदूरों की मजदूरी हड़पते हो,

कब इतने अहसान फ़रामोश हो गए तुम ?

सद्भाव तुम्हारे कब हुए खामोश और गुम ?

मानता हूँ कि वह पत्ते फिर पेड़ पर नहीं लग सकते,


पर उन पत्तों को उठाकर बीज संग,

जमीन के किसी कोने में रोंप तो सकते हो,

क्या पता वहाँ कभी कोई पेड़ फिर उग आये ?

डाली में पत्ते वापस आ जाएँ ?

तुम्हे फिर थकान में छाँव मिल जाये,

पीठ टीकाने को सहारा मिल जाये ?

 

उस मजदूर की भी थोड़ी मदद कर देना,

उसके अहसानों का बदला चुका देना,

क्या पता कब तुम्हे और एक,

आशियाने की जरूरत पड़ जाए ?

 

क्या पता वहाँ कभी कोई पेड़ फिर उग आये,

तुम्हे फिर थकान में छाँव मिल जाये,

पीठ टीकाने को सहारा मिल जाये ?

क्या पता कब तुम्हे और एक,

आशियाने की जरूरत पड़ जाए ?


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