सुरक्षित
सुरक्षित
अपने वतन को सुरक्षित रखना है तो,
बेटियों को सुरक्षित रखना होगा।
भ्रूण हत्या और दहेज है बर्बादी की राही,
इन राहों में कदम न रखना होगा।
न जाने कितनी बेटियों को सहनी पड़ी,
दहेज की मार।
किसी को जिंदा जलाया गया,
तो किसी को घायल कर गई तलवार।
दौलत के लालच में, न करना मनमानी।
घर में अगर बेटी है,तो कहलाओगे अभिमानी।
बेटियां ही लिखती है,अपने जीवन की कहानी।
बेटियों से ही लगती है,ये जिंदगी सुहानी।
बेटा होने पर तो होता है,कुंआ पूजन।
पर बेटी होने पर क्यों होती है,चेहरे पे सूजन।
बेट-बेटी में किया क्यों,इतना फरक।
ये सोच इंसान को,ले जाती है नरक।
बेटी जैसा हीरा दुनियां में,कहीं न मिलेगा।
पतझड़ के मौसम में भी ये फूल, हमेशा खिलेगा।
लाख आए चाहे दुखों की नौबत, बेटी कभी हार न मानेगी ।
अपना हो या पराया,सब का दुख पहचानेगी।
बेटा एक दिन छोड़ देगा आपको, रोता हुआ।
बेटी को पाकर कोई मां-बाप न छोटा हुआ।
बेटी तो लेकर आती है,खुशियों की बहारें।
एक हाथ में होती है पुस्तक,
दूजे हाथ में जिम्मेदारियों की बोछारें।
एक मुस्कुराहट बेटी की,
सारे घर को कर देती है रोशन।
तन्हाइयों के साय में रहकर भी,
सफलता को दे देती है प्रमोशन।
न करे कोई भ्रूण हत्या और दहेज
लेने की गलती,तुम रहना सावधान।
बेटी-बहू बनकर हर घर का,
लिख देती है संविधान।
चल सकती है नारी, सुलगते हुए अंगारों पे।
कल्पना चावला भी एक बेटी थी,
अपनी पहचान छोड़ गई चांद-सितारों पे।
नन्हीं सी जाने अन्मोल होती है
बड़ी होकर कामयाबी के मोती पिरोती है।