STORYMIRROR

Satish Chandra Pandey

Abstract

4  

Satish Chandra Pandey

Abstract

सुखी है आदमी कब

सुखी है आदमी कब

1 min
276

सुखी है आदमी कब

जब उसे संतोष है,

अन्यथा उलझन है 

मन में रोष है।

जो मिला उस पर

नहीं कुछ चैन है,

इसलिए यह मन मेरा

बेचैन है।

गर मेरे मन में

भरा संतोष है,

चमचामते दिन

मधुर सी रैन है।

हो अगर संतोष 

तन पुलकित है यह

होंठ में मुस्कान

मन में चैन है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract