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Ram Chandar Azad

Abstract

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Ram Chandar Azad

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सुबह-सवेरे

सुबह-सवेरे

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हुआ सवेरा चिड़ियाँ बोलीं

कमलदलों ने पाँखें खोलीं

उछल कूद करती हुई मछली,

मन हूँ सरोवर की मुँहबोली।


ऊषा देख निशा घबराई

बॉय बॉय कर चल दी भाई

फूलो ने खुशबू की साँसे,

कोने - कोने में पहुंचाई।


मंद मंद सुरभित समीर ने,

तन मन में उल्लास जगाई

वृक्षों के झुरमुट में देखो,

मत्त मयूर पंख फैलाये।


संग मोरनी नाच नाचकर,

उससे लय सुर ताल मिलाये

स्वर्णिम आभा से आलोकित,

नील गगन जैसे मुस्काये।


डरकर छिप गए सारे तारे,

सूरज ने जब आंख दिखाये

चंदा मामा सहमे भागे,

सूरज को जब देखे आगे।


आंख मीचते बच्चे जागे,

खेल खेलने को वे भागे।


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