सुबह का भुला
सुबह का भुला
सुबह का भुला
हुआ सवेरा
पंछी चहकने लगे
काम की तलाश में
युवा निकल पड़े
सूरज के साथ
शिक्षा तो पूरी
रोजगार के लाले पड़े
उम्र गुजरती रही
रोजगार ना मिला
घर के ताने,
शादी की चिंता
रोजगार नहीं
दम निकाल दिया
युवा जिंदगी का
गुस्सा ऊपर वाले पर
कोस रहा भाग्य को
शिक्षा के बावजूद
भटक रहा हैं
आज का युवा
तानों से त्रस्त होकर
निकल पड़ता है
निढ़ाल सूरज की तरह
थक जाते पांव
भूखे पेट और पथराई आंखे
ढूंढती रोजगार
मजबूर हालात
ले आते उसे उस घर में
जहां उसने कुछ बन जाने का
हौंसला दिखाया था कभी
माँ-बाप बुजुर्ग बीमार
उन्हें अब तो थी
सहारे की जरूरत
भले ही रोजगार ना मिला
उन्हें लगा कि
सुबह का भुला
शाम को घर वापस आगया
दर्द और जरूरत
बैसाखियों पर कितने ही
घरों में इसी तरह टिके।