सत्य अज्ञेय है
सत्य अज्ञेय है
ज्ञानी, ब्रह्मचारी एक ऋषि
नगर में रहते बड़े मज़े से
राजा वहाँ का उनका भक्त था
सदा वे सवछंद विचरते ।
लोग कहते बड़े सिद्ध ऋषि हैं
सत्य का ज्ञान हो चुका इनको
उनको इस सब की कोई फ़िक्र ना
प्रभु भक्ति में लीन रहते वो ।
एक दिन उनके मन में आया
चलूँ कहीं किसी और नगर में
उठाया दण्ड, पोटली अपनी
बिना बताए चल दिए वहाँ से ।
राजा को जब पता चला कि
नगर छोड़ कर संत जा रहे
चिंता हुई कहीं सत्य भी
चला ना जाए उनके साथ में ।
राजा, प्रजा सब वहाँ आ गए
विनती करें पर वो ना मानें
सभी कहें कि इस नगरी में
सत्य तो बस आप ही जानें ।
इसलिए जाने से रोकने आए
फिर भी आप जो जाना चाहें
कुछ अक्षर हमें लिखकर दे दो
सत्य - मार्ग जो हमें दिखाएँ ।
काग़ज़ कलम ले लिया हाथ में
हसीं थी मुखपर जब वो लिख रहे
डिब्बे में रख दिया काग़ज़ को
उठे अचानक, वहाँ से चल दिए ।
राजमहल में उस डिब्बे को
खोला था जब भरी सभा में
मंत्री उसमें लिखा पढ़ रहा
भीड़ जुट रही सत्य को सुनने ।
परन्तु जब लिखा हुआ पढ़ा गया
“ सत्य अज्ञेय है “ लिखा था उसमें
लिखने से ये मर जाता है
असत्य हो जाता ये कहने से ।