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Sandeep Murarka

Inspirational

2.5  

Sandeep Murarka

Inspirational

सत्ता के शिकारी

सत्ता के शिकारी

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न हिंदू मसला, न मसला है मुसलमान

न भारत वैर चाहता, न ही पाकिस्तान।

 

ये खेल है वोटों का दोनों ओर चल रहा

रोक लो, अब ये ज़हर नीला पड़ रहा।

 

गाहे बेगाहे मिलते रहते, होती रहती अंजुमन

गले लगते अलीम* औ वजीर, मानो हो नदीम **

 

अँग्रेजी में दोनों के हुक्मरान, ढेरों बतियाते रहे

हम उर्दू को, तुम हिन्दी को बेवजह गरियाते रहे।

 

सीमा पर मरें सैनिक, हम मोमबत्तियाँ जलाते रहे,

उरी बेख़बर राज़दूत हमारे, पार्टियाँ मनाते  रहे।

 

एक्सपोर्ट इंपोर्ट् के नाम पर, बढ़ गया खूब व्यापार

मिल कर खेलेंगे ट्वेंटी ट्वेंटी,  बुरा है सिर्फ कलाकार।

 

बेचने वाले हम दर्द तेल, आज़ देश के ख़ास हितैषी हो चले ,

अमीर नहीं अमर के मित्र खड़े, अतुल्य भारत के झंडे तले ।

 

मिट्टी के दिये खरीदने को, प्रेरित करने वालों हे महान लोगों,

माटी पे लगा दिया टैक्स***, घरों से घड़ा बाहर निकाल दिया।

 

मुसलमानी जमीं के तेल के बिना गुजारा अपना चलना नहीं ,

हिंदू मसालों  के बिना, बिरयानी में उनके स्वाद पड़ना नहीं।

 

आडवाणी ने जिन्ना के चरणों पे माथा यूँ ही नहीं टेका था ,

मरते दम तक, जिन्ना का दिल मुंबई में ही क्यूं अटका था ?

 

बाते हैं ढेर, हसन मंटो, खुशवंत ने भी कुछ कुछ कुरेदा है ,

सम्भल जाओ, ना और देर करो, वक्त अब भी बाकी है।

 

लड़े जिनके विरुद्ध इतना, उन अंग्रेजों को क्यूं गले लगाते हो ,

भूल जाओगे फ़िर एकबार,  काहे बलि का बकरा बनाते हो ?

 

करो नफरत कम अपनी, बाहर लाओ अंदर की समझदारी ,

ना ये  तेरे हैं , ना मेरे हैं , ये भूखे भेडिये हैं सत्ता के शिकारी।

*विद्वान

** घनिष्ठ मित्र

***माइनिंग रॉयल्टी

 


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