स्त्री
स्त्री


स्त्री आरंभ है प्रारंभ है
मां भी है पुत्री और गुरु भी है
वह शांत शीतल हवाओं सी है
वह शक्ति का रौद्र रूप भी है
ना डरती हो जब अपने पे आए
जिंदगी जीने का सलीका सिखाए
घर को वह स्वर्ग बनाए
घर को वह स्वर्ग बनाए !
जगत शक्ति अंबा का है रूप वह
अबला ना समझ ए मूर्ख मानव
दुनिया बदलने में वह एक पल ना लगाए
दुर्गा का है वो रूप
वो काली का है अवतार
सरस्वती बन अपने बच्चों को पढ़ाए
मत कर उसका अपमान मानव!
स्त्री एक शक्ति है
सामने उसके कोई टिक ना पाए
स्त्री आरंभ है प्रारंभ है !